zero ka avishkar kisne kiya
zero ka avishkar kisne kiya :- हेलो दोस्तों इस पोस्ट में हम जानेंगे कि zero का आविष्कार किसने कब किया। zero को हम शून्य कहते है। यह बात तो हम सब जानते हैं कि शून्य का आविष्कार भारत में ही हुआ था। लेकिन यह बात बहुत कम व्यक्ति जानते हैं कि शून्य का आविष्कार किसने किया।
जरा सोचो अगर शून्य का आविष्कार नहीं हुआ होता तो क्या होता तो दोस्तों गिनती नंबर नाइन पर ही खत्म हो जाती बाइनरी नंबर सिस्टम भी नहीं होता यानी 0 ,1 का फॉर्मेट नहीं होता और जब बाइनरी नंबर सिस्टम नहीं होता तो कंप्यूटर भी नहीं होता कंप्यूटर नहीं होते तो फोन भी नहीं होता यानी आज जो भी डिजिटल गैजेट आप और हम इस्तेमाल कर रहे हैं वह कुछ भी नहीं होते जी फोन पर हम दिन-रात लगे रहते हैं और कई बार तो खाना-पीना भी भूल जाते हैं। वह भी नहीं होता यानी पूरा डिजिटल वर्ल्ड ही नहीं होता इसके साथ-साथ मंगल मिशन और चांद पर जाना संभव था तो दोस्तों अब तो आप समझ गए होंगे जी शून्य यानि जीरो का मतलब नथिंग है वह नथिंग नहीं बल्कि बहुत इंपॉर्टेंट है और दोस्तों हो भी क्यों ना नंबर नाइन के बाद की गिनती को यही तो आगे बढ़ता है दोस्तों अपनी इस ऑर्टिकल में आज हम बात करेंगे शून्य यानि जीरो का आविष्कार कब हुआ कैसे हुआ और किसने किया ऑर्टिकल बहुत शानदार होने वाली है।
शून्य का महत्व (significance of zero )
यह कहना गलत नहीं होगा की गणित में शून्य की अवधारणा का आविष्कार क्रांतिकारी था 0 कुछ भी नहीं या कुछ नहीं होने की अवधारणा का प्रतीक है। यह एक आम व्यक्ति को गणित में सक्षम होने की क्षमता पैदा करता है इससे पहले गणितज्ञों को सरल गणितीय गणना करने के लिए संघर्ष करना पड़ता था आजकल शून्य का प्रयोग एक सांख्यिकी प्रतीक और एक का अवधारणा दोनों के रूप में जठिल समीकरणों को समझने में तथा गणना करने में किया जाता है इसके साथ ही शून्य कंप्यूटर का मूल आधार भी है।
शून्य का इतिहास ( history of zero in hindi)
संख्यात्मक रूप सिर्फ शून्य का प्रयोग सबसे पहले कब और कैसे हुआ था भारत में शून्य पूरी तरह से पांचवीं शताब्दी के दौरान विकसित हुआ था या फिर यूं कहें की पांचवीं शताब्दी में ही पहली बार भारत में शून्य की खोज हुई थी वास्तव में भारतीय उपमहाद्वीप में गणित में शून्य का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है तीसरी चौथी शताब्दी की बख्शाली पांडुलिपि में पहली बार शून्य दिखाई दिया था ऐसा कहा जाता है कि 1881 में एक किसान ने पेशावर अब पाकिस्तान में है बख्शाली गांव में इस दस्तावेज से जुड़े पाठ को खोद कर निकाला था यह काफी जटिल दस्तावेज है क्योंकि यह सिर्फ दस्तावेज का एक टुकड़ा नहीं बल्कि इसमें बहुत से टुकड़े हैं जो कई शताब्दी पहले लिखे गए थे रेडियोकार्बन डेटिंग की तकनीक की मदद से जो की आयु निर्धारित करने के लिए कार्बनिक पदार्थ के कार्बन आइसोटोप की सामग्री को मापने की विधि है से यह पता चला कि बख्शाली पांडुलिपि में कहीं ग्रंथ है सबसे पुराना हिस्सा 224 से 383 ई का है। उसे नया हिस्सा 680 से 779 ई का है और सबसे नया हिस्सा 885 से 993 ई का है इस पांडुलिपि में सनोवर के पेड़ के 70 पत्ते और बिंदु के रूप में सैकड़ो शून्य को दिखाया गया है उस समय यह डॉट संख्यात्मक रूप में शून्य नहीं थे बल्कि 101, 1100 जैसे बड़े संख्याओं के निर्माण के लिए इस स्थान निर्धारक यानी प्लेसहोल्डर अंक के रूप में इस्तेमाल किया गया था पहले इन दस्तावेजों की मदद से व्यापारियों को गणना करने में मदद मिलती थी कुछ और प्राचीन संस्कृतियों जो कि शून्य को स्थान निर्धारक प्लेसहोल्डर अंक के रूप में इस्तेमाल करती थी जैसे कि बेबीलोन के लोग सुनने को दो पत्ते के रूप में इस्तेमाल करते थे।
शून्य का आविष्कार कब और किसने किया?
माया सभ्यता के लोग इसे सेल की संख्या के रूप में इस्तेमाल करते थे इसलिए हम कह सकते हैं कि प्राचीन सभ्यताओं को कुछ भी नहीं की अवधारणा पता थी लेकिन उनके पास इस दर्शाने के लिए कोई प्रतीक नहीं था ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार भारत में ग्वालियर में 9वीं शताब्दी की एक मंदिर के शिलालेख में वर्णित शून्य को सबसे पुराने रिकॉर्ड के रूप में माना जाता है क्या आपको पता है शून्य कब एक अवधारणा बन गया शून्य भारत में संख्या पट्टी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है यहां तक की पहले गणितीय समीकरणों को कविता के रूप में गया जाता था आकाश और अंतरिक्ष जैसे शब्द कुछ भी नहीं यानी शून्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक भारतीय विद्वान पिंगला ने द्विध्दारीय संख्या का इस्तेमालकिया और वह पहले थे जिन्होंने जीरो के लिए संस्कृत शब्द शून्य का इस्तेमाल किया था 628 ईस्वी में ब्रह्मगुप्त नामक विद्वान और गणितज्ञ ने पहली बार शून्य और उसके सिद्धांतों को परिभाषित किया और इसके लिए एक प्रतीक विकसित किया जो की संख्याओं के नीचे दिए गए एक डॉट के रूप में था उन्होंने गणितीय कैलकुलेशन यानी एडिशन और सब्सट्रैक्शन के लिए शून्य के रूप में संबंधित नियम भी लिखा इसके बाद महान गणितज्ञ और खगोलीय आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली में शून्य का इस्तेमाल किया था।
अंतिम शब्द:-
तो दोस्तों ऑर्टिकल का सार यही तक है कि शून्य भारत का एक महत्वपूर्ण आविष्कार है जिसने गणित को एक नई दिशा दसा दी और इसे अधिक सरल बना दिया तो दोस्तों आपको हमारी यह ऑर्टिकल कैसा लगी हम उम्मीद करते हैं आप को पसंद आया होगा।